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उसका दोष क्या है भाग - 20 15 पार्ट सीरीज


उसका दोष क्या है (भाग-20)
           अन्तिम किश्त

           कहानी अब तक 
सनोज के कार्यालय से उसका वेतन शिल्पा को देने निर्णय लिया जाता है l सनोज के माता पिता अपनी बहू शिल्पा के साथ पूरी दृढ़ता के साथ खड़े थे l
                  अब आगे
   विद्या और सनोज का परिवारिक जीवन खुशहाली से चल रहा था l सनोज अपने कार्यालय और विद्या स्कूल में व्यस्त थे l हां उसे यह स्पष्ट पता चल रहा था कि उसके साथी शिक्षक और शिक्षिकाओं की दृष्टि में उसका वह सम्मान नहीं रहा है l अब उसके साथ कहीं आने-जाने में शिक्षिकाएं हिचकने लगी हैं l शिक्षकों की दृष्टि भी उसे कुछ बदली-बदली सी लग रही थी l
  घर के आवश्यक सामग्रियों की खरीदारी के लिए सनोज उसे कहता - "ले आना" या फिर उससे पैसा मांग लेता | विद्या को आश्चर्य लग रहा था उसकी इस हरकत पर | एक दिन उसने पूछ दिया -  
  "मैं घर के सामान खरीद कर लाऊं, अच्छा लगता है, तुम क्यों नहीं ले आते"?
  सनोज - "दरअसल विद्या बात यह है कि मेरा सारा वेतन साहब शिल्पा को दे दे रहे हैं | हमारे विवाह के बाद हमारे कार्यालय में साहब ने ऐसी ही व्यवस्था दी है, मेरा वेतन शिल्पा और बच्चों तथा माता-पिता के लिए होगा | मैंने उसे छोड़कर अपनी अलग गृहस्थी बसाई है, दूसरा विवाह करके, इसलिए वेतन मेरे हाथ में नहीं देकर शिल्पा के हाथ में मिलेगा | ऐसे में मेरा हाथ बिल्कुल खाली रहता है, और मुझे बार बार तुमसे पैसे मांगने में शर्म आती है, इसलिए मैं तुम्हें कहता हूं सामान लाने के लिए | तुम ऐसा कर सकती हो अपने अकाउंट में मेरा नाम भी जुड़वा दो तो मैं घर की सारी खरीदारी स्वयं कर लिया करूंगा, तुम्हें खरीदारी नहीं करनी होगी बाजार जा कर"|
  विद्या को यह बात उचित लगी और उसने अपने अकाउंट में सनोज का नाम भी बैंक जाकर जुड़वा दिया | उसे दुःख हुआ कि उससे प्यार करने की सजा सनोज को ऐसे मिल रही है l उसने तय किया वह सनोज के साथ पूरा सहयोग करेगी l
   एक दिन अचानक सनोज ने उस से कहा - " तुम्हारा वेतन इतना कम क्यों आता है ? तुम्हारे खाता में पैसे भी बहुत कम हैं l क्या कहीं और भी अकाउंट खुलवा रखी हो"?
  विद्या - "नहीं मेरा अकाउंट तो एक ही है, परंतु पैसे कम आते हैं, क्योंकि मैंने होम लोन लिया हुआ था | इसकी किश्त कट जाती है, और मकान बनाने में बहुत पैसे खर्च हो गए थे, इसलिए अकाउंट में कैसे कम हैं l होम लोन का किश्त कटने के बाद जो बचता है मैं उसी से अपना काम चलाती थी"|
सनोज और कितने दिन कटेगा यह किश्त"?
विद्या - "अधिक तो नहीं अब एक 2 वर्ष और होगा"|
  सनोज - "अब तो तुम उस मकान में रहती नहीं हो, तो तुम किश्त देना बंद कर दो"|
विद्या - "कैसे बंद कर सकती हूं मेरे वेतन से ही किश्त कट जा रहा है, किस्त बंद करने के लिए मुझे मेरे विभाग को और बैंक को आवेदन देकर वहां से रुकवाना पड़ेगा l आप तो जानते होंगे,मेरे विभाग में कितना समय लगता है इन सब कामों में l मुझे लगता है कि कारवाई होते-होते किश्त का समय समाप्त हो जाए" l
  सनोज - "फिर ऐसा करो, तुम किश्त की राशि प्रत्येक माह रमेश से ले लिया करो"|
विद्या - " मैं उसका मुंह नहीं देखना चाहती, इसलिये मैं उससे कुछ भी बोलने नहीं जाऊँगी हाँ आप चाहो तो उससे मिल कर बात कर राशि ले लिया करें"|
सनोज घबड़ाया,उसे रमेश से प्रथम मुलाकात याद आ गई जिसमें रमेश ने उसकी अच्छी खासी पिटाई कर दी थी l उसका सामना करने की हिम्मत नहीं कर पाया अपने में l 
  उस समय सनोज खामोश रह गया, परन्तु उसके बाद वह बार-बार विद्या को समझाता रहा कि वह मकान पर दावा कर दे l उसके पैसे से बना है, इसलिए मकान पर उसका अधिकार है, और मकान रमेश से ले ले l एक दिन विद्या के साथ वकील के पास जाकर रमेश को नोटिस भी भिजवा दिया l रमेश ने इसका जवाब दे दिया जो वकील ने इन दोनों को बुला कर सुना भी दिया | पूरे बजट सहित हिसाब बतलाया था रमेश ने, जितनी राशि विद्या ने मकान में लगाया है मकान की कुल लागत उसके लगभग चौगुनी है l तीन भाग रमेश ने उसमें लगाया है अपनी पैतृक सम्पत्ति से l विद्या मकान के चौथाई भाग की अधिकारिणी ही हो सकती है, पूरे मकान की नहीं l उस मकान में उसका पूरा परिवार रहता है, माता-पिता सहित l विद्या ने अपनी मर्जी से दूसरा विवाह कर लिया है, इसलिये रमेश की सम्पत्ति पर उसका किसी भी तरह का कोई अधिकार नहीं बनता | हाँ, रमेश उसपर दावा कर सकता है अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा पर आघात पहुँचाने का l रही मकान में हिस्सा देने की बात, उसके द्वारा लगायी गई राशि के एवज में तो वह भी नहीं दे सकता क्योंकि जमीन उसकी है और मकान में उसका परिवार रहता है l इसलिये मकान का चौथा भाग भी विद्या को नहीं दे सकता है, चाहे तो उसकी कीमत किश्त में अदा कर देगा l और किस्त के रूप में एक बहुत छोटी राशि उसने स्वीकार की थी, क्योंकि उसे अपने परिवार और बच्चों की देखभाल भी करना था l नोटिस का यह जवाब भी उसने लिखित नहीं दिया था, वकील को सुना कर गया, साथ में यह भी बोल गया यदि विद्या को चाहिए मकान तो वह कोर्ट में आए l उसने लिखित सिर्फ इतना दिया था - क्योंकि विद्या उसे छोड़कर घर से भागकर सनोज के साथ रहने लगी है, इसलिये विद्या का उसकी सम्पत्ति परअब कोई अधिकार नहीं बनता है l हाँ विद्या यदि वापस आकर उसके साथ रहना चाहे तो वह अभी भी तैयार है उसकी गलतियों को क्षमा करके अपनाने के लिए l
यहां वकील के सामने भी रमेश देवता बन गया और विद्या को अपरोक्ष रूप से चरित्रहीन प्रमाणित कर गया l कोर्ट में जाने के लिए सनोज भी तैयार नहीं था क्योंकि अदालती कार्रवाई में जो खर्चा होता है, वह वहन करना उसके लिए संभव नहीं था l और विद्या तो वैसे भी कोर्ट जाकर अपने को और अधिक शर्मिंदगी मैं डालना नहीं चाहती थी l
    धीरे धीरे अब सनोज का व्यवहार उसके प्रति बदलने लगा, और वह क्रूर होता गया l अब सनोज उस पर हाथ भी चला देता l उसके बदले हुए रूप पर विद्या आश्चर्यचकित थी l क्या यह वही सनोज है, जो रमेश के द्वारा दिए गए मानसिक आघात पर भी क्रोधित होता था l और अब वह स्वयँ उसे मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से प्रताड़ित कर रहा था l
अब यह दैनिक घटना हो गई थी l सनोज प्रत्येक शाम को पी कर आता और उसकी बुरी तरह कुटाई करता l अगले दिन स्कूल जाने के पहले उसे अपने शरीर के जख्म छुपाना मुश्किल हो जाता था l जब उससे दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने कह दिया -  
    "तुमसे तो अच्छा रमेश था उसने मुझ पर कभी हाथ नहीं उठाया, और तुम मुझे इतना परेशान करते हो l क्या यही तुम्हारा प्यार है"?
   सनोज - "वह तुम्हारी पिटाई क्यों करता,तुम पर हाथ क्यों उठाता, तुम तो उस पर अपनी दौलत लुटा रही थी | मुझे तुमसे क्या मिल रहा है, कुछ भी तो नहीं | तुम्हारा बैंक एकाउन्ट खाली है, वेतन भी इतना कम l अभी भी पैसे रमेश के पास जा रहे हैं l क्या सोच कर मैंने तुम से विवाह किया था, और क्या मिला l मैंने सोचा था तुम्हारा वेतन बहुत अधिक है, वह तो मिलेगा ही,और तुम्हारे पास अच्छा खासा पैसा भी जमा होगा l उससे जमीन खरीद कर मकान बनाऊंगा, गाड़ी लूँगा, अपने सारे शौक पूरे करूँगा l मेरी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो जाएगी परंतु तुम तो बिल्कुल कंगाल निकली l तुम्हारी उम्र भी मुझसे बहुत अधिक है l किस कारण से मैं तुम्हें प्यार करूं ? मैं तो बर्बाद हो गया"|
   वो कहता जाता था, और पीटता जाता था l जब थप्पड़, लात, और जूतों से पिटाई करके थक गया तब गरम कलछी से जगह-जगह विद्या को दाग दिया l ऊपर से डंडे से भी पिटाई की, और उसे छोड़कर घर से निकल गया | विद्या कराहती हुई घर के अंदर पड़ी रही l
   अगले दिन वह स्कूल जाने की स्थिति में नहीं थी l जब स्कूल नहीं गई तो उसके स्कूल से एक सहयोगी ने फोन करके अनुपस्थिति का कारण पूछा, तब उसने अटकते हुए अपनी स्थिति के विषय में उसे जानकारी दी l उसकी स्थिति की जानकारी पाकर उसके सहयोगी शिक्षकों ने रमेश को फोन किया l रमेश आकर उसे उठाकर ले गया l 
  हॉस्पिटल में उसकी चिकित्सा करवाई l पन्द्रह दिनों तक हॉस्पिटल में भर्ती रही विद्या l घर आने के बाद भी दो महीना पूरी तरह आराम करने के लिए डॉक्टर ने उसे कहा था l रमेश ही उसके स्कूल में छुट्टी का आवेदन दे आया, और उसकी देखभाल के लिए घर में एक सेविका नियुक्त कर दिया l स्वयं भी समय पर उसे दवाएँ और पथ्य देता l रमेश ने उसकी उस समय बहुत देखभाल की l एक बार भी सनोज के विषय में कुछ भी नहीं कहा, कोई उपालम्भ नहीं दिया l 
विद्या ने सनोज को सूचना दे दी थी अपने हॉस्पिटल में होने की, परंतु सनोज एक बार भी उसे देखने नहीं आया | सनोज अब वापस अपने घर जा चुका था शिल्पा के पास | विद्या समझ गई थी इस बार भी वह पूरी तरह छली गई थी l सनोज को उससे कोई प्रेम नहीं था,वह "उत्कट प्रेम" विद्या के पैसे के लिए दिखा रहा था l उसकी समझ में विद्या के अकाउंट में लाखों रुपए होंगे, और उसका वेतन भी ऊंचा है, इसलिए उसने विद्या को प्रेम जाल में फँसाया था l 
  विद्या का दिल अब पुरुषों की ओर से तिक्त हो गया था l और अब उसने तय कर लिया, जब सारे पुरुष ऐसे ही हैं उस के नसीब में,फिर रमेश क्या बुरा है l इसलिए अब वह कहीं भी इधर-उधर अपना ध्यान नहीं भटकाएगी, और इसी परिवार के साथ अपना जीवन व्यतीत करेगी l एक बार जो उसने गलती की है रमेश से विवाह करके, उसका नतीजा उसे पूरी जिंदगी भुगतना है | अब वह इस परिवार के साथ ही ऐसे ही रहेगी | 
अगर वह उस समय मर गई होती, तो शायद उसके लिये अधिक अच्छा होता l लगता है ईश्वर उसके पूर्व में किए पापों का दंड देना चाहते हैं, इसलिए ऐसी दुर्दशा हुई | और अब अतिथि बनकर ही सही, वह उसी घर में रहेगी, उसकी किस्मत में जो कुछ लिखा होगा वह सहन करेगी l 
विद्या खामोश हो गई थी l अंधेरा होने पर था l मछली घर में रौनक बढ़ गई थी, उसकी दर्द भरी कथा से मैं बाहर नहीं निकल पाई थी l विद्या ने मेरी बांह पकड़ हिलाया और कहा - "दीदी आप कहां खो गईं"?
  मैं जैसे सपने से जगी - "विद्या बहुत दर्द भरी है आप की कथा में"|
  विद्या - " दीदी आप ही बताईये मेरा दोष क्या है ? क्या सुखी गृहस्थी और प्यार की तलाश करना अपराध था, मुझे मेरे किस अपराध की इतनी भयङ्कर सजा मिली ? रमेश और सनोज दोनों निर्दोष रहे, मैं दोषी बन गई चरित्रहीन हो गई"|
   "मैं न्याय करने वाली कौन होती हूं, परंतु फिर भी एक बात कहूंगी आपको अपनी बहन मानकर | आपकी एक छोटी सी भूल ने आपकी जिंदगी बर्बाद कर दी l ना-ना सुखी गृहस्थी और प्यार की तलाश करना अपराध नहीं था आपका, आपने प्यार किया वह भी गलती नहीं की, प्यार को अलविदा भी कहा वह भी आपकी गलती नहीं थी l परंतु दुबारा वापस होकर एक विवाहित पुरुष से विवाह करना आपकी गलती हो गई l रमेश के बदले यदि किसी अन्य से आपने विवाह किया होता तो ऐसा नहीं होता l परंतु जो हो गया उसको अब कोई भी वापस बदल नहीं सकता l रही बात दोषी और निर्दोष की तो हमारी सामाजिक संरचना ही ऐसी है, जिसमें पुरुष को विशेषाधिकार मिला है, इसी कारण बिना विचारे एक पल में स्त्री को दोषी और पुरुष को निर्दोष प्रमाणित कर देता है l समाज मेरे और आप से मिल कर ही बना है l आप चाहें तो अपने माता-पिता के साथ रह सकती हैं, यदि रमेश के साथ इच्छा नहीं हो आपकी रहने की l निर्णय आपका होना चाहिये क्या करना है"|
  विद्या - "दीदी पहले मैंने भी यही सोचा था, परंतु माँ-बाबा के घर में भाई भाभी का राज है l मैं नहीं चाहती वहां जाने के बाद मेरे कारण माँ-बाबा को भी कोई तकलीफ हो l इसलिए मैं वहां नहीं गई l मुझसे आदमी पहचानने में बहुत भूल हुई l मैंने सोचा नहीं सनोज मुझसे छोटा होकर कैसे मुझसे प्यार कर रहा है l इसमें अवश्य उसका कोई स्वार्थ होगा l यही कथा है मेरी, और अब मैं रमेश के साथ रह रही हूं | रमेश भी प्रयास करता है मुझे खुश रखने की l मैं खुश नहीं रहूं तो भी दिखावा करती हूं, खुश रहने की l उसके बच्चों को भी प्यार कर लेती हूं l और अब तो संगीता भी मेरे प्रति बहुत कोमल हो गई है,अभी मेरी देखभाल भी कर लेती है l वैसे तो संगीता पहले भी कभी कटु नहीं बोलती थी मेरे साथ, सिर्फ रमेश से मेरी अपेक्षाएँ पूरी नहीं हुई थीं l मरणासन्न स्थिति में लाकर मुझे अकेले छोड़ जब सनोज चला गया, तब रमेश ने मेरी चिकित्सा करवाई और मेरी पूरी तरह देखभाल की | मेरी सेवा भी उसने की है, इसलिए अब मैं उसे छोड़ना नहीं चाहती | कैसा भी हो परन्तु वह तो मुझे जबरन उठा कर नहीं ले गया था विवाह करने के लिए l मैंने भी सहमति दी थी विवाह हेतु l दीदी आप मेरे लिए दु:खी मत होइएगा | मैं जानती हूं आपका दिल बहुत कोमल है, किसीका दु:ख देखकर दु:खी होती हैं इसलिये कह रही l आपसे अपने दिल की बात कह कर आज मेरा मन बहुत हल्का हो गया"|
  मैंने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा -
   "मैं आपका नाम तो नहीं लूंगी विद्या | आप यदि अनुमति दें तो मैं आपकी जीवनी लिखना चाहूँगी"|
   विद्या - "आप अवश्य लिखिये दीदी | मेरी इतनी बदनामी हो चुकी है इसलिये अब नाम छिपाने की कोई आवश्यकता नहीं"|
   मैं - "हाँ मैं एक लेखक हूँ, इसलिए मैं आपकी कथा अवश्य लिखूंगी,जिससे कि कोई और लड़की ऐसी भूल ना करे | यदि आप की आपबीती पढ़कर 1-2 लड़की भी मार्ग भटकने से बच जाए तो आपका यह त्याग सफल होगा"|
अचानक विद्या का मोबाइल बजने लगा l उसने देखा रमेश का फोन था l रिसीव कर कहा - "मैं मछली घर में हूं | अपनी एक दोस्त के साथ आई थी आज यहां घूमने | यदि आपके पास समय हो तो मुझे यहां से ले लें, अन्यथा मैं स्वयं भी आ जाऊंगी"|
फोन स्पीकर पर रखा था विद्या ने इसलिये रमेश की स्पष्ट आवाज आई - "तुम वहीं रुको मैं तुम्हें लेने आ रहा हूं, और अपनी दोस्त को भी रुकने के लिए बोलना, मैं उन्हें घर छोड़ दूंगा"|
  मुझसे रहा नहीं गया, मैंने कहा -
  भाई साहब आप चिंता ना करें, मैं स्वयँ ही चली जाऊंगी l बस आप आ जाइए जल्दी, क्योंकि मैं विद्या जी को यहां अकेली छोड़ना नहीं चाहती"|
रमेश मेरी आवाज पहचान गया, मुझसे कई बार पहले मिल चुका था उसने कहा -
    "ओह दीदी आप हैं, प्लीज दीदी आप जाइएगा नहीं l मैं आपको छोड़ने आपके घर तक अवश्य जाऊंगा, इसी बहाने से मैं जीजाजी और बच्चों से भी मिल लूंगा | कसम है आपको दीदी, आप निकलियेगा नहीं, बस में आ ही रहा हूं"|
  रमेश ने फोन काट दिया था | विद्या ने हंसकर कहा - " उस घटना के बाद से रमेश मेरा बहुत ध्यान रखने लगे हैं l और एक बात कहुँ दीदी वह भी आपकी बहुत इज्जत करते हैं l इसलिए अनुरोध है आप रुक जाइए, नहीं तो उन्हें बहुत दु:ख होगा"|
  और हम दोनों रुक कर रमेश की प्रतीक्षा करने लगीं l मैंने विद्या को उसके सुखद भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी l मंगल कामना की उसके लिये ईश्वर से अब कम से कम विद्या सुखी रहे पूरे जीवन l अब दुःखी करने वाली कोई अन्य घटना न घटे उसके साथ, जितना कुछ उसके पास है वह उससे नहीं छिने l
                                समाप्त






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4 Comments

Abhinav ji

02-Sep-2023 08:09 AM

Nice

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Abhilasha Deshpande

05-Jul-2023 03:19 AM

Sad and very nice ending

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romantic queen 👑

01-Jul-2023 08:00 PM

मैम इस कहानी को पढ़ने के बाद मैं बस इतना कहना चाहूंगी मैं पहली बार किसी कहानी को पढ़कर रोई हूं, सच में विधा के साथ बहुत गलत हुआ रमेश ने सही नहीं किया गलती विधा की थी उसे दूसरी शादी नहीं करनी चाहिए और अगर प्यार ऐसा होता है तो i wish kabhi kisi को किसी से प्यार ना हो

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